उनकी आंखों में आज पानी है
हादसों की ये मेहरबानी है
हम करें रोशनी के चर्चे क्यों?
धूप आनी है धूप जानी है
सहन उनका है अपने आंगन तक
रिश्ता एक ये भी खानदानी है
बेच दो खुद को चंद सिक्कों में
ज़मीर की लाश गर उठानी है
बुत भी सुनते है यहां सब
चुप रहो ये तो राजधानी है।