Thursday 8 September 2011

हादसा


उनकी आंखों में आज पानी है
हादसों की ये मेहरबानी है
हम करें रोशनी के चर्चे क्यों?
धूप आनी है धूप जानी है
सहन उनका है अपने आंगन तक
रिश्ता एक ये भी खानदानी है
बेच दो खुद को चंद सिक्कों में
ज़मीर की लाश गर उठानी है
बुत भी सुनते है यहां सब
चुप रहो ये तो राजधानी है।

Monday 8 August 2011

हौसला


आसमां में दूर तक कोई नहीं बादल नहीं
बारिशों के इस महीने में कहीं भी जल नहीं
अब शहर की जिन्दगी का भी अहम हिस्सा हुई
वारदातों के लिए अब चाहिए जंगल नहीं
दिनदहाडे लूट लेती है सियासत हर खुशी
कहने को उसमें कोई बीहड नहीं चम्बल नहीं
इसका मतलब ये नहीं की कारवां रुक जाएगा
कौन ऐसा रास्ता है जिसमें कोई दलदल नहीं
जिन्दगी के सामने रख दी गई शर्तें वहीं
जिनकी हमनें की खिलाफ़त जिनके हम कायल नहीं
मुश्किलों से भागने से मुश्किलें हटती नहीं
कोई नशा कैसा भी हो वो मुश्किलों का हल नहीं

Thursday 4 August 2011

बेटे ने भेजी है पहली तन्ख्वाह

बेटे ने भेजी है पहली तन्ख्वाह
अम्मा की आंखें हैं सपनों की राह
सुखिया अब ठाकुर के खेत नहीं जाएगी,
घर बैठ बूढे बाप के पैर ही दबाएगी
ओसारों को मिलेगी नवठठ की छांह
बेटे ने भेजी है पहली तन्ख्वाह
नाम लिखाकर छोटुआ भी बंध जाएगा बस्तों से किताबों से
छुट्टी पा जाएगा होटलों से ढाबों से
पूरी कर पाएगा वो भी अब अपनी हर चाह
बेटे ने भेजी है पहली तन्ख्वाह
रातें अब कम बीतेगीं दिल के सदमें में
तेज़ी आ जाएगी खेत के मुकदमें में
टूटने नहीं पाएगा अब कोई भी गवाह
क्योंकीबेटे ने भेजी है पहली तन्ख्वाह